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“हिन्दी दिवस”: हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा

कीबोर्ड के पत्रकार

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भाषाओं की दुनिया- दुनिया भर में लगभग 7,111 भाषाएं बोली जाती हैं (Ethnologue, Directory of languages)। जिसमें से 6,700 भाषाओं के गायब होने का खतरा है (United Nations’ International Year of Indigenous Languages)।  सबसे ज्यादा 2303 भाषाएं एशिया में बोली जाती हैं। उसके बाद 2140 अफ्रीका, 1058 अमेरिका, 288 यूरोप बाकि 1322 दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाती हैं। इनमें बहुत सी भाषाएं पारिवारिक रूप में परस्पर सम्बद्ध हैं। ध्वनि, व्याकरण तथा शब्द समूह के तुलनात्मक अध्ययन-विश्लेषण के आधार पर एवं भौगोलिक निकटता के आधार पर भाषाओं के पारिवारिक संबन्धों का निर्णय किया गया है।

इस समय संसार में मुख्यतः कुल बारह परिवार हैं–

  1. द्रविड़,
  2. चिनी-तिब्बती,
  3. जापानी-कोरियाई,
  4. सामी (सैमेंटिक),
  5. हामी (हेमेटिक),
  6. यूरील-अल्ताई,
  7. मलय पॉलीनेशी,
  8. कंकोशी,
  9. आस्ट्रिक,
  10. बांतू,
  11. अमरीकी,
  12. भारोपीय परिवार।

यह हुई भाषा परिवार की बात। किन्तु संसार में अनेकों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं। एक लोकोक्ति के अनुसार चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस परबानी, मतलब…

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तमाम लोगों को अपनी-अपनी मंजीलें मिली.. कमबख्त दिल हमारा ही हैं जो अब भी सफ़र में हैं… पत्रकार बनने की कोशिश, कभी लगा सफ़ल हुआ तो कभी लगा …..??? अठारह साल हो गए पत्रकार बनने की कोशिश करते। देश के सर्वोतम संस्थान (आईआईएमसी) से 2003 में पत्रकारिता की। इस क्षेत्र में कूदने से पहले शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा था, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रिसर्च कर रहा था। साथ ही भारतीय सिविल सेवा परिक्षा की तैयारी में रात-दिन जुटा रहता था। लगा एक दिन सफ़ल हो जाऊंगा। तभी भारतीय जनसंचार संस्थान की प्रारंभिक परिक्षा में उर्तीण हो गया। बस यहीं से सब कुछ बदल गया। दिल्ली में रहता हूं। यहीं पला बड़ा, यहीं घर बसा। और यहां के बड़े मीडिया संस्थान में पत्रकारिता जैसा कुछ करने की कोशिश कर रहा हूं। इतने सालों से इस क्षेत्र में टिके रहने का एक बड़ा और अहम कारण है कि पहले ही साल मुझे मेरे वरिष्ठों ने समझा दिया गया था कि हलवाई बनो। जैसा मालिक कहे वैसा पकवान बनाओ। सो वैसा ही बना रहा हूं, कभी मीठा तो कभी खट्टा तो कभी नमकीन, इसमें कभी-कभी कड़वापन भी आ जाता है। सफ़र ज्यादा लम्बा नहीं, इन चौदह सालों के दरम्यां कई न्यूज़ चैनलों (जी न्यूज़, इंडिया टीवी, एनडीटीवी, आजतक, इंडिया न्यूज़, न्यूज़ एक्सप्रेस, न्यूज़24) से गुजरना हुआ। सभी को गहराई से देखने और परखने का मौका मिला। कई अनुभव अच्छे रहे तो कई कड़वे। पत्रकारों को ‘क़लम का सिपाही’ कहा जाता है, क़लम का पत्रकार तो नहीं बन पाया, हां ‘कीबोर्ड का पत्रकार’ जरूर बन गया। अब इस कंप्यूटर युग में कीबोर्ड का पत्रकार कहलाने से गुरेज़ नही। ख़बरों की लत ऐसी कि छोड़ना मुश्किल। अब मुश्किल भी क्यों न हो? सारा दिन तो ख़बरों में ही निकलता है। इसके अलावा अगर कुछ पसंद है तो अच्छे दोस्त बनना उनके साथ खाना, पीना, और मुंह की खुजली दूर करना (बुद्धिजीवियों की भाषा में विचार-विमर्श)। पर समस्या यह है कि हिन्दुस्तान में मुंह की खुजली दूर करने वाले (ज्यादा खुजली हो जाती है तो लिखना शुरू कर देते हैं… साथ-साथ उंगली भी करते हैं) तो प्रचुर मात्रा में मिल जाएंगे लेकिन दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते हैं। ब्लॉगिंग का शौक कोई नया नहीं है बीच-बीच में भूत चढ़ जाता है। वैसे भी ब्लॉगिंग कम और दोस्तों को रिसर्च उपलब्ध कराने में मजा आता है। रिसर्च अलग-अलग अखबारों, विभिन्न वेवसाइटों और ब्लॉग से लिया होता है। किसी भी मित्र को जरूरत हो किसी तरह की रिसर्च की… तो जरूर संपर्क कर सकते हैं।

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