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हर हर गंगे! गंगा को क्यों “माँ” की उपाधि दी गई

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भारत में गंगा हिमालय से लेकर गंगासागर तक बहने वाली नदी नहीं है। “मां” है। जीवनदायिनी है। पापनाशिनी है। पतितपावनी है। हिंदू सभ्यता और संस्कृति की धरोहर है। इसीलिए गंगा को मां का दर्जा प्राप्त है। सिर्फ भारतवासियों की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतवंशियों के लिए गंगा मां है। जैसे बच्चे को मां की गोद में सुकून मिलता है। उसी प्रकार गंगा की गोद में मनुष्य को मोक्ष रूपी सुकून मिलता है। यह प्रथा हजारों सालों (मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ के समय से) से यूं ही चली आ रही है। इसीलिए गंगा की अमृत धारा को ‘मोक्षदायिनी’ भी कहा गया है।

स्वामी विवेकानंद- एक बार अमेरिका में कुछ पत्रकारों ने स्वामीजी से भारत की नदियों के बारे में प्रश्न पूछा, आपके देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है? स्वामीजी बोले- यमुना. पत्रकार ने कहा आपके देशवासी तो बोलते हैं कि गंगा का जल सबसे अच्छा है। स्वामी जी का उत्तर था, कौन कहता है गंगा नदी हैं, वो तो हमारी मां हैं।

महात्मा गांधी- ने कहा था, ‘गंगा भारतीय सभ्यता की जननी है, उसके किनारों ने सभ्यताओं को जन्म दिया है’।

पंडित जवाहरलाल नेहरु- के शब्दों में, गंगा घनिष्ठ रूप से परंपरा, पौराणिक गाथाओं, कला, संस्कृति और इतिहास के साथ संबंधित है।

पौराणिक महत्व- गंगा का उल्लेख हिंदुओं के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी है। ऋग्वेद 3.58.6 में लिखा गया है “आपका प्राचीन घर, आपकी पवित्र मित्रता, हे वीरों, आपकी संपत्ति जाह्नवी के तट पर है”। गंगा को भागीरथी, जाह्नवी, देवनदी आदि नामों से भी पुकारा जाता रहा है। गंगा के मैदानी क्षेत्र में रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। स्कंद पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, शतपथ ब्राह्मण और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने गंगा को तीर्थों का प्राण बताया है। गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। एक कथा है महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की। भगीरथ अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशी राजा थे। अपनी कठिन साधना और घोर तपस्या के बल से उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी सहायता से गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए और मृत लोगों के उद्धार किया।

ऐतिहासिक महत्व- ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही भारत का हृदय स्थल निर्मित है और यही बाद में आने वाली सभ्यताओं का केंद्र बना। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।महान सम्राट अशोक के साम्राज्य का केन्द्र पाटलिपुत्र (पटना), बिहार में गंगा के तट पर बसा हुआ था। सातवीं सदी के मध्य में कानपुर के उत्तर में गंगा तट पर स्थित कन्नौज, जिसमें अधिकांश उत्तरी भारत आता था, हर्ष के सामन्तकालीन साम्राज्य का केन्द्र था। मुगल शासनकाल के दौरान, उनका शासन न केवल मैदान, बल्कि बंगाल तक फैला हुआ था। डेल्टा क्षेत्र के ढाका और मुर्शिदाबाद मुगल सत्ता का केन्द्र था। अंग्रेज़ों ने 17वीं सदी के उत्तरार्ध में हुगली के तट पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की स्थापना करने के बाद धीरे-धीरे अपने पैर गंगा की घाटी में फैलाएं और 19वीं सदी के मध्य में दिल्ली तक जा पहुंचे।

धार्मिक महत्व- धार्मिक अवधारणाओं में गंगा को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं जिनमें गंगोत्री, हरिद्वार, वाराणसी (काशी) और संगम (इलाहाबाद) सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। उत्तराखंड के पंच प्रयाग तथा प्रयागराज जो इलाहाबाद में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गए हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है इसलिए समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। संक्राति, गंगा-दशहरा, अर्धकुंभ और महाकुंभ के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत सौभाग्य समझा जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान मात्र से सभी पापों का अंत हो जाता है। 

साहित्यिक महत्व- गंगा भारत और हिंदी साहित्य की मानवीय चेतना का आधार भी है और उसको प्रवाहित भी करती है। स्कंद पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, रामायण और महाभारत में गंगा का बार-बार उल्लेख आता है अन्य पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत के कवि पंडित जगन्नाथ तर्कपंचानन ने गंगा की स्तुति में ‘श्रीगंगालहरी’ नामक काव्य की रचना की है। इसमें केवल 521 श्लोक हैं जिसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन किया गया है। हिन्दी काव्य साहित्य के आदि महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में ‘गंगा’ नदी की चर्चा अनेक प्रसंगों में की गई है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रंथ जगनिक रचित आल्हखण्ड में गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। शृंगारी कवि विद्यापति ने अपने पदो में गंगा, यमुना का उल्लेख किया है। कवि ने शृंगार वर्णन में गंगा की चर्चा अनेक स्थलों पर की है। ‘कबीर वाणी’ और जायसी के ‘पद्मावत’ में भी गंगा का उल्लेख मिलता है, किन्तु सूरदास और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। ‘सूरसागर’ के नवम स्कन्धा में श्री गंगा आगमन वर्णन है। महाकवि तुलसीदास ने ‘रामचरित मानस’ कवितावली और विनय पत्रिका आदि में गंगा के माहात्म्य का उल्लेख अनेक प्रसंगों में किया है। मुस्लिम कवियों में रहीम दास की अपार श्रद्धा हिन्दी देवी-देवताओं में थी। वे माँ गंगा की वंदना की है। रहीम दास के अलावा मुस्लिम कवियों में रसखान, रहीम, ताज, मीर, जमुई खाँ आजाद और वाहिद अली वाहिद आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। रीतिकाल के कवियों में केशवदास, सेनापति, पद्माकर आदि ने गंगा प्रभाव का वर्णन किया है। आधुनिक काल के अन्य कवियों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, सुमित्रानन्दन पन्त, नन्दकिशोर मिश्र, कवि सत्यनारायण, श्रीधर पाठक और अनूप शर्मा आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा माहात्म्य का वर्णन किया है। (जानकारी साभार- डॉ. राजकुमार सिंह, अभिव्यक्ति-हिंदी)

वैज्ञानिक महत्व- गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में ‘बैक्टीरियोफेज’ नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। गंगा नदी का जल कभी खराब नहीं होता।

आर्थिक महत्व- गंगा अपनी सहायक नदियों के साथ देश के बड़े भू-भाग के लिए सिंचाई का बारहमासी स्नोत है। इन क्षेत्रों में प्रमुख रूप से धान, गेहूं, गन्ना, दलहन, तिलहन और आलू की पैदावार होती है। नदी की वजह से मछली उद्योग भी काफी फल-फूल रहा है। गंगा पर्यटकों को भी आकर्षित करती है। इसके तट पर स्थित हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी बड़े तीर्थ शहर हैं।

गंगा का उद्गम और सफर

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भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2,525 किमी की दूरी तय करती है। उत्तरांचल में हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। गंगा पांच राज्यों, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए लगभग 43 प्रतिशत आबादी को जीवन प्रदान करती है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है। जो कुमायूं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगोत्री तीर्थ में गंगा जी को समर्पित एक मंदिर है। गंगोत्री तीर्थ से 18 कि.मी. उत्तर की ओर 3892 मीटर (12,769 फीट) की ऊंचाई पर इस हिमनद का मुख है अर्थात उद्गम स्थल है। गाय के मुख के आकार का बना होने के कारण इसका नाम “गोमुख” है। यह हिमनद 25 कि.मी. लंबा व 4 कि.मी. चौड़ा और लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है। इसका जल स्रोत 5000 मी. ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। 26 जुलाई 2016 को वाडिया हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन ज़ूलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूटने की वजह से गोमुख बंद हो गया है। हालांकि 2013 में उत्तराखंड में आए ‘जलप्रलय’ के समय गोमुख में दरार आ चुकी थी।

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गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी-बड़ी धाराओं का योगदान है- 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं से मिलकर गंगा नदी बनती है। अलकनंदा नदी और सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। धौली गंगा का अलकनंदा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है जो 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। फिर नंद प्रयाग में अलकनन्दा का नंदाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से 139 किमी दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी और अलकनन्दा देव प्रयाग में संगम करती हैं यहां से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है। इस प्रकार 200 किमी का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती है।

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Source: ToI

मैदानी यात्रा- हरिद्वार से निकल गढ़मुक्तेश्वर, कन्नौज और कानपुर के रास्ते लगभग 800 किमी मैदानी यात्रा करते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुंचती है। यहां इसका संगम यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। इसे ‘तीर्थराज प्रयाग’ कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहां उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुंचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं।  

गंगा के बेसिन में बसे 40 करोड़ से अधिक लोगों के जीवन पर उसका असर पड़ता है। 375 प्रजातियां मछलियों की पाई जाती हैं गंगा नदी में। इनके अलावा उभयचरों की 90 प्रजातियां भी इसमें पाई जाती हैं। गंगा में पाई जाने वाली सोंस (गंगा की डाल्फिन) को संरक्षित जलीय जीव घोषित किया गया है।  10 करोड़ से अधिक लोग पीने और सिंचाई के पानी के लिए पूरी तरह से गंगा और इसकी सहायक नदियों पर निर्भर हैं।

भागीरथी और पद्मा- भागलपुर से गंगा दक्षिणवर्ती होकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है- भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती फरक्का बैराज से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। यहां गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे ‘गंगासागर’ संगम कहते हैं। वहीं पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवं मेघना नदी मिलती हैं। अंत में सुंदरवन में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर-संगम करती है। गंगा और ब्रह्मपुत्र दोनों नदियां मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा 350 किमी चौड़ा डेल्टा बनाती हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा- गंगा उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है। गंगा अपनी लंबी यात्रा करते हुए सहायक नदियों के साथ 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान बनाती है। ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर गंगा दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा (350 किमी चौड़ा) बनाती है।

गंगा की सहायक नदियां- यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन गंगा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चम्बल, बेतवा, शारदा और केन महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्‍लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है।

  • चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं।
  • यमुना इलाहाबाद के निकट बायीं ओर से गंगा नदी में जा मिलती है।
  • रामगंगा नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में मिलती है।
  • घाघरा मप्सातुंग(नेपाल) से निकलकर अयोध्या होती हुई बलिया के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है।
  • गंडक हिमालय से निकलकर सोनपुर के पास गंगा में मिलती है।

मोक्षदायिनी गंगा को प्रदूषण से “मोक्ष” कब?

प्रदूषण की भेंट चढ़ती गंगा

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महात्मा गांधी ने कहा था, ‘गंगा भारतीय सभ्यता की जननी है, उसके किनारों ने सभ्यताओं को जन्म दिया है’… 4 नवम्बर, 2008 में राष्ट्रीय नदी का दर्जा (मनमोहन सिंह सरकार द्वारा) मिलने के बाद भी राज्य और समाज द्वारा उपेक्षा जारी है…

गंगा विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित 10 नदियों में से एक है… लगभग 5 टन रासायनिक उर्वरक, 1500 टन कीटनाशक पदार्थ हर साल बहकर गंगा में मिल जाता है… 58 संसदीय क्षेत्र में 100 शहर गंगा किनारे बसे हैं… ऋषिकेश से इलाहाबाद तक गंगा के आस-पास 146 औद्योगिक इकाइयां हैं… 93 फीसदी प्रदूषण सीवर और औद्योगिक कचरे के चलते हो रहा है… शहरों, महानगरों से निकली गंदगी, पूजा-पाठ से निकली सामग्री, मूर्ति विसर्जन और दाह संस्कार भी गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं…

National Mission for Clean Ganga (NMCG) भारत सरकार के मुताबिक…

In the Ganga basin approximately 12,00 crore litres per day (mld) sewage is generated, for which presently there is a treatment capacity of only around 4,000 mld. Approximately 3000 mld of sewage is discharged into the main stem of the river Ganga from the Class I & II towns located along the banks, against which treatment capacity of about 1000 mld has been created till date. The contribution of industrial pollution, volume-wise, is about 20 per cent but due to its toxic and non- biodegradable nature, this has much greater significance. The industrial pockets in the catchments of Ramganga and Kali rivers and in Kanpur city are significant sources of industrial pollution. The major contributors are tanneries in Kanpur, distilleries, paper mills and sugar mills in the Kosi, Ramganga and Kali river catchments”

क्यों बढ़ रहा है प्रदूषण

  • 1950 में शहरी जनसंख्या लगभग 17 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 31 प्रतिशत हो गई है… गंगा के किनारे बसे शहरों में लगभग 25 प्रतिशत आबादी स्लम जैसी स्थितियों में रहती है।
  • गंगा के किनारे अनेक शहर, कस्बे और गांव स्थित हैं. प्रतिदिन इस आबादी का लगभग 1.3 बिलियन लीटर प्रदूषित कचरा गंगा में गिरता है।
  • गंगा के आस-पास स्थित सैकडों फैक्ट्रियां भी गंगा को प्रदूषित कर रही हैं. एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन लगभग 260 मिलियन लीटर औद्योगिक अपशिष्ट गंगा में जहर घोल रहा है।
  • गंगा में फेंके जाने वाले कुल कचरे में लगभग 80 फीसद नगरों का कचरा होता है जबकि 15 फीसद औद्योगिक कचरा।
  • विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है।

क्या कहते हैं आंकड़े…

  • जल का तापमान बढ़ा- पिछले 30 सालों में गंगाजल का तापमान 2° C बढ़ चुका है… 1985 में गंगाजल का तापमान 12.5° C  था, जो 2015 में बढकर 14.5° C  हो गया है
  • ऑक्सीजन की मात्रा कम हुई- इसी तरह गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा भी घटी है… गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा 1985 में 10.8 मिलीग्राम प्रतिलीटर थी जो कि अब घटकर 8.2 मिलीग्राम प्रतिलीटर रह गई है
  • पारदर्शिता कम हुई- गंगाजल की पारदर्शिता 1985 के मुकाबले 60 फीसद से घटकर 29 फीसद रह गई है।
  • टीडीएस की मात्रा बढ़ी- गंगा में भारी मात्रा में कूडा, कचरा और सीवर का पानी डालने से गंगा में टीडीएस की मात्रा 287.8 मिलीग्राम प्रतिलीटर से बढकर 412.7 मिलीग्राम प्रतिलीटर हो गई है। सोत्र: इंडियन एकेडमी ऑफ एनवायरनमेंट साइंसेज
  • पानी में पाए गए नुकसानदेह तत्त्व- गंगाजल के नमूनों में कोलीफोर्म, फिकल कोलीफार्म, इ-कोलाई और फीकल स्ट्रैप्टोकोकाई नामक नुकसानदेह तत्त्व पाया गया है। सोत्र:  नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंन्स्टीट्यूट

गंगोत्री में जल है कम प्रदूषित- गोमुख से गंगा की शुरूआत होती है। गोमुख से जब भागीरथी की धारा निकलती है तो सबसे पहले आबादी से उसका वास्ता गंगोत्री में ही पड़ता है। गंगोत्री मे हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस वजह से यहां देखते ही देखते गेस्ट हाउस की संख्या बढ़ गई है। सैलानी बढ़े, गेस्ट हाउस बढ़े तो गदंगी को बढ़नी ही थी। इनका गंदा पानी भागीरथी में ना जाए इसके लिए गंगा एक्शन प्लान के तहत करीब 150 करोड़ रूपये खर्च किए गए। पिछले एक साल में साधु संतों ने गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगा की निर्मल और अविरल धारा के लिए जो अभियान चलाया उसका असर भी गंगोत्री में नजर आया।

हालांकि गंगोत्री के बाद से लेकर हरिद्वार तक प्रदूषित पानी के 77 नाले गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिर रहे हैं… ऋषिकेश से हरिद्वार तक 248 आश्रम, होटल और धर्मशालाएं गंगा के किनारे बने हुए हैं। इनकी गंदगी गंगा में जाती है। हालांकि वर्तमान में क्या स्थिती है इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। (जनवरी 2016, जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक)

हरिद्वार में गंगा में गंदगी- पिछले 18 वर्षों में विभिन्न मदों और कुंभ व अर्द्धकुंभ में होने वाले विकास कार्यों के दौरान 1200 करोड़ खर्च करके भी प्रशासन हरिद्वार में 24 नालों से निकलने वाले 50 एमएलडी गंदे पानी को सीधे गंगा में गिरने से आज तक नहीं रोक सका। हालांकि, दावा इन 22 में से 15 नालों को पूरी तरह टैप करने और 2 को आंशिक रूप से टैप करने का है। पर, हकीकत में यह कागजी झूठ के अलावा कुछ नहीं है।

हरिद्वार में शहरी क्षेत्र से रोजाना निकलने वाले तकरीबन 120 एमएलडी (मिलीयन लीटर डेली) सीवरेज जल के शोधन के लिए लगी तीन एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) की कुल क्षमता महज 63 एमएलडी ही है। ऐसे में वह अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने के बावजूद निकलने वाले कुल सीवरेज का 57 एमएलडी जल का ही शोधन नहीं कर पाती तो नालों के पानी को कैसे साफ कर सकेगी।

इन सरकारी आंकड़ों से साफ है कि रोजाना 57 एमएलडी सीवरेज जल के साथ 50 एमएलडी ड्रैनेज जल को बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे गंगा में डाला जा रहा है। अकेले हरिद्वार में रोजाना 100 एमएलडी यानि 10 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। यही वजह है कि प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (पीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार हरिद्वार में सर्वानंद घाट के अलावा कहीं भी गंगा का पानी पीने योग्य नहीं है।

हरिद्वार में 366 औद्योगिक इकाइयां अपना औद्योगिक और केमिकल युक्त पानी सीधे गंगा में डाल रही हैं। ये सभी औद्योगिक इकाइयां वर्षों से ऐसा कर रही थीं। इसका खुलासा प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप और निर्देशन पिछले दिनों केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संयुक्त निरीक्षण में हुआ। संयुक्त टीम ने जिले की 964 औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण किया था, जिसमें 366 को प्रदूषण मानकों का उल्लंधन करने और गंगा को गंदा करने का दोषी पाया था। सीपीसीबी ने इसके बाद सभी 366 इकाइयों को तत्काल प्रभाव से बंद करने के आदेश एसपीसीबी को दिए हैं। कार्रवाई होना अभी बाकी है। (मई 2018, जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक)

फर्रुखाबाद- यहां का 80 प्रतिशत गन्दा पानी सीधे गंगा में गिरता है। एक अनुमान के अनुसार नगर क्षेत्र फतेहगढ-फर्रुखाबाद से 14 एम.एल.डी. (मिलीयन लीटर प्रतिदिन) गन्दा पानी निकलता है: परन्तु बिजली के अभाव में सिर्फ 2.78 एमएलडी जल का ही शोधन हो पाता है। गंगा प्रदुषण नियन्त्रण कार्यक्रम के अन्तर्गत नगर में दो पंपिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं; परन्तु यह व्यवस्था अपर्याप्त है।

कन्नौज- यहाँ के पुराने गंगा घाट से लेकर हरदोई रोड स्थित महादेवी घाट तक गंगा गन्दा नाला बन चुकी है। कई स्थानों पर गंगा जल काला पड चुका है, कारण; मेहंदी घाट से लगभग दो सौ मीटर पर गंगा की धारा में काली नदी आकर मिलती है।

कानपुर मे गंगा की दुर्दशा- कानपुर में गंगा नदी में लगातार फैलते प्रदूषण को लेकर हर कोई चिंता में है. कानपुर की गंगा को साफ रखने के लिए कई ठोस कदम उठाए गए हैं लेकिन ये कोशिशें गंगा को साफ रख पाने में नाकाफी साबित हो रही हैं. कानपुर में गंगा के प्रदूषित होने की सबसे बड़ी वजह है शहर का औद्योगिक कचरा . 800 से भी ज्यादा चमड़े की फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा गंगा को दूषित कर रहा है. कानपुर के सीसामऊ नाला से हर रोज करीब 30 मिलियन लीटर गंदा पानी और कचरा सीधे गंगा नदी में गिरता है. नाले से गिरते कचरे को लेकर शिकायतें हो चुकी है लेकिन इसको रोकने के लिए कोई ठोस कदम प्रशासन की तरफ से अब तक नहीं उठाया गया है. गंगा आंदोलन से जुड़े लोगों को कहना है कि फैक्ट्रियों से ज्यादा ये नाले गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं. कानपुर शहर में सीवर के पानी को साफ़ करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट भी लगा है. गंगा एक्शन प्लान के तहत ये 1998 में बना. इस प्लांट की क्षमता 130 मिलियन लीटर पानी साफ करने की है. लेकिन बिजली की कमी की वजह से प्लांट घंटों बंद रहता है. शहर का एक तिहाई कचरा इस नाले से गंगा में पहुंच रहा है. लेकिन ताजा रिपोर्ट के नतीजों के मुताबिक कानपुर में गंगा के प्रदूषण में भारी गिरावट आई है. हालांकि इसके बाद भी कानपुर का पानी अब भी विषैला है. कानपुर का पानी पीने लायक इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें पिछले दो सालों की तरह अब भी ई कोलाई पॉजीटिव मिला है।

इलाहाबाद में प्रदूषित होती गंगा- पतित पावनी, मोक्षदायिनी मां गंगा प्रदूषित हैं। प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है। गंदे नालों से गंगा जल का अमृत तत्व नष्ट हो रहा है। ये तमाम चिंताएं संतों को अभी से सताने लगी हैं क्योंकि कुछ माह बाद प्रयाग में महाकुम्भ का आयोजन होना है। इसको लेकर संत फिक्रमंद हैं कि यही स्थिति रही तो भक्तों की आस्था पर ठेस पहुंचेगी। विदेशों से आने वाले लोगों के मन में गंगा की छवि खराब होगी। प्रयाग में गंगा को प्रदूषित करने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार यहां के नाले हैं। इन नालों के जरिए रोजाना गंदा पानी गंगा में छोड़ा जाता है। सलोरी नाले का 40 एमएलडी (mega litre per day) प्रदूषित पानी प्रतिदिन गंगा में गिरता है। इसके अलावा 46 नाले गंगा व यमुना के जल को अपवित्र कर रहे हैं। वर्ष 2001 से अब तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं, परंतु उसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है। हर वर्ष अस्थाई इंतजामों में करोड़ो खर्च किए जाते हैं। बावजूद इसके स्थिति सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है।

वाराणसी में प्रदूषण की भेंट चढ़ती गंगा- मंदिरों और घाटों के नगर वाराणसी में भी गंगा का हाल बुरा है. हिंदुओं के सात पवित्र नगरों में से एक वाराणसी में गंगा किसी गंदे नाले की तरह प्रदूषित होती जा रही है. वाराणसी के पानी में बैक्टीरिया की मौजूदगी पाई गई. ये पानी पीने लायक नहीं है. वाराणसी में गंगाजल में ई कोलाई भी पाया गया जो आपको बीमार कर सकता है. मन्दिरों और घाटों के नगर वाराणसी में भी गंगा का हाल बुरा है. हिन्दुओं के सात पवित्र नगरों में से एक वाराणसी में गंगा किसी गंदे नाले की तरह प्रदूषित होती जा रही है.

पिंडदान, वेणीदान, मुंडन आदि संस्कारों में प्रयोग होने वाले माला, फूल व अन्य सामग्रियों से काफी गंदगी फैलती है। इससे प्रतिदिन 150 मिलियन लीटर कचरा निकलता है। जो सीधे गंगा और यमुना में जाता है। 132 संस्थाएं लेकिन गंदगी जस की तस गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए शहर में 132 संस्थाएं रजिस्टर्ड हैं। सुनकर थोडा आश्चर्य होगा लेकिन यह हकीकत है। लेकिन दु:खद है कि इससे गंगा का कोई उद्धार नहीं हुआ। इसमें 103 संस्थाएं सिर्फ कागज पर ही चल रही हैं, जबकि अन्य कभी-कभार खानापूर्ति करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। सफाई के नाम पर कुछ पन्नियों को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया जाता है।

गंगा में फिकल क्वालिफार्म की संख्या वर्तमान समय में प्रति 100 सी सी पानी में 60 हजार बैक्टीरिया है और वी.ओ.डी की मात्रा चार पांच मिली ग्राम प्रति लीटर है, जबकि यह तीन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। आदि केशव घाट पर यही फिकल क्वालिफार्म डेढ़ लाख प्रति सौ सीसी पानी में हैं, जबकि वी.ओ.डी की मात्रा 22 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में है। अगर एक लाइन में कहा जाय तो गंगा अब मरने के कगार पर पहुंच चुकी है। वह दिन दूर नहीं जब गंगा इतिहास के पन्नों में सरस्वती नदी की तरह कहीं खो जाएंगी। 2008 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में गंगा प्रयोगशाला के हेड प्रो. यू.सी चौधरी ने तो यहां तक कह दिया है कि गंगा में आक्सीजन की मात्रा अब तक के निम्नतर स्तर पर है, क्योंकि टिहरी में गंगा के पानी को रोक तो दिया गया है लेकिन गंदे नालों का पानी गंगा में लगातार गिर रहा है जिससे आक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। उन्होंने बेबाक लहजों में कहा की यदि अब गंगा को बचाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया तो गंगा को कोई नहीं बचा सकता है।

वाराणसी में गंगा में प्रदूषण का एक कारण शव भी हैं। साल 1989 में इससे निजात पाने के लिए गंगा एक्शन प्लान में दो विद्युत् शवदाह गृह की स्थापना की गई, लेकिन अक्सर लापरवाही के चलते वो भी बंद हो जाते हैं. वाराणसी में दो घाट है जहाँ पर अंतिम संस्कार किया जाता है एक हरिश्चंद्र घाट, दूसरा मणिकर्णिका घाट. यहाँ लगभग 23 हजार से लेकर 32 हजार शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है, जिनका लगभग दो सौ मिलियन लीटर अपशिष्ट गंगा में प्रवाहित होता है. इंसानों के अलावा 6 हजार जानवरों के शव को भी गंगा में प्रवाहित किया जाता है जिसने गलने से गंगाजल विषैला होता है.

पटना – संसदीय लोक लेखा समिति ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि गंगा कार्ययोजना के पश्चात गंगा और प्रदूषित हुई है और गंगा जल तेजाब बन गया है। योजना की विफलता को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। पहले पटना के विभिन्न स्थानों से थोडा-थोडा गन्दा पानी गंगा जी में गिरता था; परन्तु अब 20 नालों का मुँह गंगा में ही खुलता है। प्रदेश के 10 ट्रीटमेन्ट प्लान्ट अरसे से खराब पडे है। योजना को पूरा या परिणामकारी कराने में अदालत के हस्तक्षेप से भी कोई लाभ नहीं हुआ। हाजीपूर, मोकामा, कहलगाँव आदि स्थानों के लिए घोषित परियोजनाओं में से ज्यादातर को साकार नहीं किया जा सका। पटना से सटकर बहनेवाली गंगा लगातार दूर होती जा रही है। जहाँ पहले गंगा धारा बहा करती थी आज वहाँ रेत उडती है। फतुहा से दानापुर तक गंगा के पेट में ईंट के भट्टे लगते हैं। इसकी दुर्दशा का हाल यह है की अनेक लोग छ्ठ पर्व को गंगा के घाट पर मनाने के स्थान पर अपने घरों में सम्पन्न करना ज्यादा सुविधाजनक मानने लगे है। ‘बोतल में गंगा’ की अवधारणा लगातार फैल रही है।

प. बंगाल – राज्य में 750.23 एमएलडी सीवेज से निबटने के लिए गंगा कार्ययोजना के अन्तर्गत 15 ट्रीट्मेण्ट प्लांट लगाने की स्वीकृति मिली। प्रथम चरण में 14 प्लांट लगे; लेकिन दूसरे चरण में कोई भी प्लांट स्वीकृत नहीं हो पाया; लेकिन राज्य सरकार ने जमीन उपलब्ध कराने से मना कर दिया। राज्य में जो 14 प्लाण्ट लगाये गये थे वे ठीक से काम नहीं कर पा रहे है क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर बेहद लापरवाही और ढिलाई है। नगर के नालों का अधिकतर गन्दा पानी गंगा जी में ही जा रहा है।

मोदी सरकार ने गंगा सफाई के लिए क्या-क्या कदम उठाए

2014 में मोदी ने कहा था, मुझे मां गंगा ने बुलाया है- 2014 के आम चुनावों के दौरान पीएम मोदी खुद गंगा आरती में शामिल हुए थे और कहा था कि मैं आया नहीं हूं बल्कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है।

मोदी सरकार की महत्वकांशी योजना… ‘नमामि गंगे’: गंगा संरक्षण के लिए एकीकृत कार्ययोजना बनाने के मकसद से वित्त वर्ष 2014-15 में 2,037 के प्रस्ताव के साथनमामि गंगे अभियान की शुरूआत हुई…

Namami Gange- Projects Status as on 31st October 2019

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Source: https://nmcg.nic.in/writereaddata/fileupload/28_FinalupdatedMPR%20forMonthofOctober2019.pdf

प्रगति- जून 2018 तक

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अब तक प्रगति

  • 26 मई 2014: उमा भारती जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री बनीं
  • 1 अगस्त 2014: पर्यावरण मंत्रालय से गंगा का काम जल संसाधन मंत्रालय को सौंपा
  • 8 सितंबर 2014 और 6 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा सफाई पर उच्च स्तरीय बैठकें कीं
  • 27 अक्तूबर 2014 और 26 मार्च 2015 को एनजीआरबीए की बैठक हुई,पीएम मोदी खुद मौजूद थे
  • 28 फरवरी 2015: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नमामि गंगे कार्यक्रम का ऐलान किया
  • 13 मई 2015: कैबिनेट ने नमामि गंगे के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दी
  • 30 जनवरी 2016: गंगा को निर्मल बनाने के लिए केंद्र के आठ मंत्रालयों के बीच एमओयू
  • 5 जून 2017- नमामि गंगे योजना : गंगा की सफाई के लिए बजट भारी भरकम, आधा पैसा भी नहीं हुआ खर्च, RTI से खुलासा
  • 3 सितंबर 2017 को उमा भारती से गंगा की साफ-सफाई का जिम्मा लेकर सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को सौंपा गया
  • 20 जुलाई 2018- एनजीटी ने कहा, 100 करोड़ भारतीयों के लिए सम्मानीय गंगा नदी की हालत खराब
  • 4 सितम्बर 2018- वर्ल्ड वाइड फंड यानी WWF ने गंगा को बताया दुनिया की सबसे संकटग्रस्त नदी, सरकार के लिए झटका
  • 5 अक्टूबर 2018- गंगा को लेकर CM योगी का निर्देश, 15 दिसंबर के बाद न गिरे किसी तरह की गंदगी

गंगा सफाई के लिए तीन बड़े देशों से समझौता

  • 14 अप्रैल 2016- नमामि गंगे के लिए भारत और जर्मनी के बीच समझौता, जर्मनी 22.5 करोड़ रुपए का योगदान देगा
  • 6 मई 2017- गंगा की सफाई को जापान देगा ‘माइक्रोबबल’ टेक्नॉकलजी
  • 5 जुलाई 2017- भारत और इज़राइल के बीच गंगा समझौते पर हुआ करार

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Source: Jagran

मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट और NGT ने कब-कब लगाई फटकार

  • 13 अगस्त 2014- ‘गंगा की सफाई पर नहीं दिख रही गंभीरता- ‘सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि गंगा की सफाई का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को गंगा नदी की सफाई का रोडमैप दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
  • 3 सितम्बर 2014- ऐसे तो गंगा की सफाई में 200 साल लग जाएंगे- नरेंद्र मोदी क्योटो की तर्ज पर बनारस को बचाने और गंगा की सफाई में जापान की मदद का वादा लेकर जब भारत पहुंचे, उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने गंगासफाई पर उनकी सरकार के कामकाज को कठघरे में ला खड़ा किया।
  • 10 अक्टूबर 2015- मोदी सरकार को NGT की फटकार, कहा- करोड़ो खर्च के बाद एक जगह ऐसी बताएं जहां साफ हो गंगा।
  • 8 फरवरी 2016- सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी के हालत पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि गंगा सूखने के कगार पर है। गंगा में कई जगह पानी नहीं दिखाई देता है सिर्फ धब्बे दिखते हैं।
  • 24 जनवरी 2017- गंगा सफाई और सीवेज उपचार मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला आया है।अब इसकी कमान एनजीटी के हाथों में सौंप दी गई है।
  • 8 फरवरी 2017- गंगा सफाई मामले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने फिर से राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन (एनएमसीजी) के वरिष्ठ अधिकारी को फटकार लगाई है। एनजीटी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि गंगा सफाई के नाम पर संसाधनों और समय का सिर्फ नुकसान ही किया जा रहा है।
  • 13 जुलाई 2017- एनजीटी ने जुलाई 2017 को गंगा की सफाई पर फैसला देते हुए कहा कि सरकार ने गंगा को शुद्ध करने के लिए बीते दो साल में 7,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, लेकिन गंगा नदी की गुणवत्ता के मामले में रत्तीभर सुधार नहीं दिखा है।

  • 13 जुलाई 2017- गंगा को निर्मल बनाने के सरकार के महत्वाकांक्षी नमामिगंगे कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुए एनजीटी ने कहा कि बीते दो साल में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकाय 7,304 करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं लेकिन गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
  • 13 जुलाई 2017- एनजीटी ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए साफ कहा है किगंगा नदी से 500 मीटर की दूरी तक अगर कोई कचरा डालेगा तो उस पर हर बार भारी भरकम 50 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा।
  • 20 जुलाई 2018- एनजीटी ने कहा, 100 करोड़ भारतीयों के लिए सम्मानीय गंगा नदी की हालत खराब

29 दिसंबर 2017- गंगा सफाई अभियान में ढिलाई पर कैग ने की मोदी सरकार की खिंचाई

  • दिसंबर 2017 में संसद में पेश की गई कैग की 160 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘परफॉर्मेंस ऑडिट से यह खुलासा होता है कि फाइनैंशल मैनेजमेंट,प्लानिंग, इम्प्लिमेंटेशन और मॉनिटरिंग में खामी के चलते पर्याप्त राशि खर्च नहीं हुई।’
  • कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नैशल मिशन फॉर क्लीन गंगा प्रोग्राम के तहत अप्रैल, 2015 से लेकर मार्च, 2017 तक 6,700 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी। लेकिन, इस गंगा सफाई के लिए इस दौरान करीब 1660 करोड़ रुपये की राशि ही खर्च की जा सकी। इस दौरान गंगा के किनारे बसे 10 में से 8 शहरों में नदी का जल नहाने योग्य नहीं पाया गया है।

गंगा संरक्षण मंत्रियों के बयान

  • 26 मई 2016- 2018 तक गंगा दुनिया की 10 सर्वाधि‍क स्‍वच्‍छ नदियों में शुमार होगी- उमा भारती
  • 11 मई 2018- मार्च 2019 तक 80 फीसदी साफ हो जाएगी गंगा- नितिन गडकरी
  • 2 अक्टूबर 2018- अगले साल मार्च तक 99 फीसदी तक साफ हो जाएंगी गंगा- नितिन गडकरी

गंगा-यमुना को सजीव प्राणी का दर्जा देने पर विवाद

  • 20 मार्च 2017- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इन दोनों नदियों को सजीव मानव का दर्जा दिया था, और उत्तराखंड सरकार को इन नदियों के हितों की रक्षा करने का आदेश दिया था।
  • 7 जुलाई 2017- सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों नदियों को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा देने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। इस मामले में उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

गंगा सफाई के लिए पहले कब-कब की गई पहल

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Source: HT
  • पहला गंगा एक्शन प्लान- 1985 में अस्तित्व में आया। इसके तहत जून 1986 में काम शुरू भी किया गया, लेकिन सफलता बेहद कम मिली। यह 15 साल चला। इस पर 462 करोड़ रुपये खर्च हुए। मार्च 2000 में इसे बंद कर दिया गया।
  • दूसरा गंगा एक्शन प्लान- अप्रैल 1993 में गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू किया गया, जो 1995 में प्रभावी रूप ले सका। दिसंबर 1996 में गंगा एक्शन प्लान-दो को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में विलय कर दिया गया।
  • 4 नवम्बर 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया।
  • फरवरी 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी (एनआरजीबीए) का गठन किया गया।
  • 2011 में इस कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में किया गया। मोदी सरकार ने 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया।
  • 1995 से 2014 तक की गंगा सफाई की इन योजनाओं पर 4,168 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें छोटी-बड़ी 927 योजनाओं पर काम शुरू किया गया।

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Source: Jagran

खनन का दंश झेलती गंगा और गंगा के लिए ‘शहीद’-

संत निगमानंद- हरिद्वार में गंगा को बचाने के लिए कई आंदोलन हुए हैं। गंगा में हो रहे खनन को बंद करने की मांग को लेकर 13 जून, 2011 को 68 दिनों के अनशन और महीने भर से अधिक समय तक कोमा में रहने के बाद हुई संत निगमानंद की मौत को कौन भूल सकता है। निगमानंद की मांग थी कि कुंभ क्षेत्र को खनन और प्रदूषण से मुक्त किया जाए।

प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद- गंगा एक्ट की मांग को लेकर 111 दिन से अनशन पर बैठे आइआइटी के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर तथा देश दुनिया के जाने-माने पर्यावरणविद् प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद का 11 अक्टूबर 2018 को 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। प्रो अग्रवाल ने 9 अक्टूबर को जल भी त्याग दिया था, जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें जबरन उठाकर ऋषिकेश के एम्स में भर्ती करवा दिया था।

  • प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने 2008 में 13 जून को उत्तरकाशी में गंगा रक्षा के पहली बार अनशन शुरू किया था। उनका यह अनशन 30 जून तक चला।
  • दूसरी बार गंगा रक्षा के लिए प्रोफेसर अग्रवाल ने 2009 में 14 जनवरी से 20 फरवरी तक अनशन किया।
  • तीसरी बार मातृसदन जगजीतपुर कनखल में 20 जुलाई से 22 अगस्त 2010 में 28 दिन का अनशन किया, तब केंद्र सरकार ने उनकी मांग मानते हुए उत्तरकाशी जिले में गंगा भागीरथी नदी पर बन रही तीन जल विद्युत परियोजनाओं लोहारी नागपाला, पाला मनेरी और भैरो घाटी को तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया था। साथ ही केंद्र सरकार ने गोमुख से लेकर उत्तरकाशी तक 135 किलोमीटर क्षेत्र को इको संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया था।
  • प्रोफेसर अग्रवाल ने चौथा अनशन 2012 में 8 फरवरी से 8 मार्च तक मातृसदन जगजीतपुर कनखल हरिद्वार में किया। जहां पर प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा रक्षा के लिए अधिनियम ड्राफ्ट 2012 बनाया
  • पांचवीं बार 22 जून 2018 को अनशन- ड्राफ्ट 2012 अभी तक लागू नहीं हुआ था उसे लागू कराने के लिए प्रोफ़ेसर अग्रवाल फिर से आमरण अनशन पर बैठे गए। 22 जून को अपना अनशन शुरू करने से पहले स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 24 फरवरी और 13 जून को दो पत्र लिखें थे। परंतु उन्हें प्रधानमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं मिला और आखिर प्रोफेसर अग्रवाल स्वामी सानंद ने 22 जून से अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि वे तो प्रधानमंत्री को उनकी गंगा की सौगंध की याद अपने अनशन के माध्यम से दिला रहे थे और उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने मातृसदन के परिसर से उन्हें जबरन उठा कर 10 जून की शाम को देहरादून के सरकारी अस्पताल में भर्ती कर दिया।

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रामलीला… मंचन का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व

कीबोर्ड के पत्रकार

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रामलीला की शुरूआत कब और कैसे हुई? दुनिया में किसने किया था सबसे पहली रामलीला का मंचन? इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। रामलीला भारत में परम्परागत रूप से भगवान राम के चरित्र पर आधारित नाटक है। जिसका देश में अलग-अलग तरीकों और अलग-अलग भाषाओं में मंचन किया जाता है। रामलीला का मंचन विजयादशमी या दशहरा उत्सव पर किया जाता है। वैसे तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के प्रभावशाली चरित्र पर कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे गए हैं। लेकिन दो ग्रंथ प्रमुख हैं। जिनमें पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ जिसमें 24 हजार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है और दूसरा ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है जिसका नाम ‘श्री रामचरित मानस’ है, जिसमें 9,388 चौपाइयां, 1,172 दोहे और 108 छंद हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई ‘रामायण’ तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ से पुरानी है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन भगवान राम के जन्म की…

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